मकर संक्रांति MAKAR SANKRANTI
मकर संक्रांति ( MAKAR SANKRANTI )
मकर संक्रांति ( MAKAR SANKRANTI )
मकर संक्रांति हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है. पौष मॉस में सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में जब प्रवेश करते हैं तब इस संक्रांति को मनाया जाता है. इसी दिन से सूर्य की उत्तरायण गति आरम्भ होती है इसलिए इसे उत्तरायणी के नाम से भी पुकारा जाता है. मकर संक्रांति का पर्व जनवरी माह की 13 या 14 वी तिथि को पूरे भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है.
उत्तर प्रदेश में 15 दिसंबर से 14 जनवरी तक के समय को खर मास के रूप में जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि खर मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए. यानि मकर संक्रांति से ही पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शरुआत होती है. इलाहबाद में गंगा, यमुना एवं सरस्वती के संगम पर हर वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है जो माघ मेले के नाम से विख्यात है. माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति से प्रारम्भ होकर शिवरात्रि के आखिरी स्नान तक चलता है.
बिहार में मकर संक्रांति के व्रत को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन खिचड़ी खाने एवं दान करने की प्रथा है। गंगा स्नान के पश्चात ब्राह्मणो एवं पूज्य व्यक्तियों में तिल एवं मिष्ठान के दान का विशेष महत्व है.
पंजाब एवं हरयाणा में एक दिन पूर्व (14 जनवरी) लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है. अँधेरा होने पर अग्नि देव में गुड , तिल, चावल और भुने हुए मकई के दानो की आहुति दी जाती हैं। किसान अपनी अच्छी फसल के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हुए पारम्परिक लोक गीतों पर नाचते गाते हैं. नव विवाहित जोड़ो के लिए एवं नवजात शिशुओं के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व है.
बंगाल में भी पवित्र स्नान के बाद तिल की प्रथा है. मकर संक्रांति पर गंगा सागर स्नान विश्व प्रसिद्थ है. पौरानिक कथाओं के अनुसार महाराजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए वर्षों की तपस्या से के गंगा जी को पृथ्वी पर अवतरित होने पर विवश कर दिया थ. मकर संक्रांति के हे दिन महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था और उनके पीछे पीछे चलते हुए गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में समा गई थीं।
तमिलनाडु में पोंगल चार दिन अलग अलग रूप में मनाया जाता है.
- भोगी पोंगल (कूड़ा करकट जलाने की प्रथा)
- सूर्य पोंगल ( माँ लक्ष्मी की पूजा)
- मट्टू पोंगल (पशुधन की पूजा)
- कन्या पोंगल ( कन्या की पूजा)
चौथे दिन खुले आँगन में मिटटी के बर्तन में खीर है जिसे पोंगल कहते है. सूर्य पूजन के पश्चात पोंगल को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.
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